कुण्डलिया
बारिश में गलियाँ हुईं, कीचड़ में तब्दील।
अस्त-व्यस्त जीवन हुआ, किससे करूं अपील।
किससे करूं अपील, सड़क का हाल बुरा है,
मुखिया की मुस्कान, बताती हरा-भरा है।
सुन लो कहें प्रदीप, प्रकृति की है यह साज़िश,
बिना किए आराम, बरसती रहती बारिश।।
अरमानों की बलि चढ़ा, घायल हैं जज़्बात।
पानी ही पानी दिखा, गायब हुआ प्रभात।
गायब हुआ प्रभात, हुआ अब जीना दूभर,
गली-मुहल्ले खेत, सभी पानी के अन्दर।
वर्षा देख प्रदीप, कहें बस परवानों की,
रहना ऋतु के साथ, बात करें अरमानों की।।
— डॉ० प्रदीप चित्रांशी
लूकरगंज, प्रयागराज



















