
डॉ०प्रदीप चित्रांशी
प्रयागराज।नब्बे वसन्त देखने वाले क़व्वाली की तर्ज पर प्रयागराज की साहित्यिक भूमि पर ग़ज़ल गायकी के नायाब हीरा विश्वनाथ प्रसाद श्रीवास्तव ‘हजीं’ अपनी जवानी में क़व्वालों के साथ क़व्वाली गाने के लिए महफिलों में जाया करते थे। सेवानिवृत्ति के बाद वह इलाहाबाद के नीमसराय नामक मुहल्ले में स्थाई आवास बनाकर रहने लगे थे। उनके आवास के बगल में मस्जिद है,वे उस मस्जिद के जलसों में बराबर जाते थे तथा अन्य जगहों के उर्स में बाहैसियत क़व्वाल शिरकत करते थे। यहीं से ग़ज़ल को क़व्वाली की तर्ज पर कहने का सफर भी उन्होंने शुरू किया था। उनके इस सफर में परिन्दों की तरह ग़ज़ल की बाग़ और फुलवारी को एक नई चहचहाहट दी।उस भोर का आगाज़ किया जिसमें परिन्दों का गीत सुनने के लिए हज़ारों-हज़ार लोग सुख की नींद को त्यागकर प्राकृतिक आनन्द के बाग़ में सैर करने आते हैं क्योंकि कुछ पल के ही लिए मगर वे अपने ग़म को भूलकर एक अलग आनन्द की दुनिया में बैठकर आनन्द की सुखानुभूति करते हैं। नगर के लोगों को इस सुखानुभूति से जोड़ने के लिए कुछ श्रेय कवि शम्भूनाथ श्रीवास्तव को जाता है।शम्भूनाथ जी से विश्वनाथ जी की मुलाकात किसी पारिवारिक कार्यक्रम में हुई थी। वहाँ पर दोनों में परिचय के साथ-साथ पारिवारिक एवं साहित्यिक चर्चा भी हुई। शम्भूनाथ ने उनका परिचय कवि योगेन्द्र मिश्र से करवाया। उस समय योगेन्द्र एक साहित्यिक संस्था ‘सद्भावना मंच ‘को चला रहे थे। संस्था के सदस्यों की सहमति से उन्हें संस्था के संरक्षक की महती भूमिका सौंपी गई। यहीं से नगर प्रयागराज में उनकी साहित्यिक यात्रा शुरू हुई जो उनके अन्तिम साँस तक चलती रही,जिसके साक्षी भी योगेन्द्र एवं उनका बेटा शीलवन्त ‘राजू’ रहे।
उनके खुलेपन और ज़िन्दादिली का आलम यह था कि दोस्तों की जमघट रोज़-ब-रोज़ उन्हीं के घर पर होती थी। दोपहर हो या शाम, काव्य महफिलों का दौर चलता रहता था। इस महफ़िल में रामवीर सिंह ‘पथिक ‘,विन्ध्यवासिनी शुक्ल’मृदुल ‘, उपेन्द्र मिश्र ‘मनमौजी’, एच.एन. पाण्डेय ‘अंजान ‘ ,शम्भूनाथ श्रीवास्तव और कवयित्री प्रीता बाजपेई की उपस्थिति अकसर दिख जाया करती थी, जिनका स्वागत सत्कार आपके पुत्र शीलवन्त’राजू’ चाय,समोसा, बिस्कुट और कभी-कभी गरमागरम पकौड़ियों से करते थे। पिता-पुत्र के इस स्नेहिल रिश्ते को देखकर आने-जाने वाला हर मेहमान विश्वनाथ जी से यह जरूर कहता था कि आप पर ईश्वर की बड़ी कृपा है, राजू जैसा पुत्र आपके पास है। मेरा भी उनके घर आना-जाना होता था। धर्म और साहित्य पर बहुत गहरी चर्चा होती थी। ज्योतिष के विषय में आपको अच्छी जानकारी थी।अकसर लोगों की कुण्डली बनाते हुए मिल जाते थे। चर्चा के दौरान साहित्य से हटकर प्रीता जी की बहुत तारीफ़ किया करते थे। वे कहते थे प्रीता दीदी मेरी छोटी बहन हैं,मेरा बहुत ख़्याल रखती हैं। जब भी मेरा कुछ खाने का मन करता है, वह फौरन अपने घर से पकाकर भेज देती हैं। विन्ध्यवासिनी जी उनसे उर्दू सीखा करते थे और उन्हीं की तर्ज पर ग़ज़ल गायकी। रामवीर और अन्जान भी अपनी कविताओं को उन्हें सुनाकर आशीर्वाद प्राप्त करते थे। दैनिक समाचार-पत्र ‘शहर समता’ के संपादक उमेश जी अपने अख़बार के कुछ पन्ने विश्वनाथ जी को देना चाहते थे लेकिन उनकी यह इच्छा अधूरी ही रह गई क्योंकि विश्वनाथ जी अस्वस्थ हो चले थे।
अपनी अस्वस्थता के कारण घर से बाहर आना-जाना बहुत कम हो गया था। पथिक,अन्जान, मृदुल जी लगभग नित्य इनके घर आने लगे। अब भी घर पर काव्य महफिलें जमती थीं। चाय का दौर चलता था।ज़िन्दादिली में कोई कमी नहीं आई थी। उनके घर जाना मुझे भी अच्छा लगता था इसीलिए मैं भी इनके घर अकसर चला जाता था। उनके निधन से कुछ दिन पूर्व मैं उनके घर गया था। आपसे मिलने के बाद ऐसा प्रतीत नहीं हुआ कि यह हमारी अन्तिम मुलाकात है। धर्म-अध्यात्म पर चर्चा, कविता का सुनना-सुनाना और चाय पीने के दौरान पुन: धर्म की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि मैं अपनी उम्र से कहीं ज़्यादा जी चुका हूँ। मुझे मृत्यु से भय नहीं लगता क्योंकि मैंने किसी पुस्तक में पढ़ा है कि मृत्यु एक विश्राम स्थल है। जब शरीर चलते-चलते थक जाता है और विश्राम स्थल पर रुककर पुन:ऊर्जा प्राप्त करता है ,उसी प्रकार मृत्यु के बाद जीव नये जीवन का सहारा लेकर फिर चलने लगता है। इस गम्भीर चर्चा के बाद उनकी अनुमति से वार्ता को विराम देकर, मैं अपने घर वापस आ गया। मुझे तनिक भी आभास नहीं था कि उनसे यह मेरी अन्तिम वार्ता है। कुछ ही दिन के बाद योगेन्द्र जी उनके घर अपनी पुस्तक देने गए। पुस्तक पर चर्चा होने के बाद विश्वनाथ जी ने एक ग़ज़ल सुनाई-
‘आप उधर जाओगे मौत इधर आएगी’
यह उनके साहित्यिक जीवन की आख़री ग़ज़ल थी, जो उन्होंने उस शख्स को सौंप दी,जिसने उन्हें पहली बार कवि-गोष्ठियों में कविता-पाठ करने का अवसर प्रदान किया था। अंतत: विश्वनाथ प्रताप श्रीवास्तव ‘हजीं’ योगेन्द्र के साहित्यिक कर्ज से भी मुक्त हो सदैव-सदैव के लिए सबको प्रणाम करके दूसरी दुनिया में चले गए।























